बस्ती पुलिस का एक कारनामा केवल एक अपराध नहीं, बल्कि समाज के मुंह पर एक करारा तमाचा है. जिस उम्र में बच्चों को खिलौनों से खेलना चाहिए, उस उम्र में एक बच्ची ने ऐसी भयानक त्रासदी झेली है जो कल्पना और समझ से परे है. मासूम बच्ची को घर से उठा कर ले जाना फिर उसके साथ बलात्कार कर उसकी हत्या कर देना बेहद ही जघन्य घटना है. गांव में तनाव का माहौल है, और हर कोई न्याय की मांग कर रहा है. वही पुलिस अपनी नाकामी छिपाने के लिए अब गांव के छोटे छोटे बच्चों को इस ब्लाइंड रेप मर्डर केस की जांच के दायरे में लाना शुरू कर दिया है.

गौरतलब है कि लालगंज थाना क्षेत्र के सिद्धनाथ गांव में 5 साल की मासूम बच्ची की बीते एक माह पहले अपहरण कर रेप के बाद हत्या कर दी गई थी, इस जघन्य अपराध की जांच में पुलिस ने अब तक जो कदम उठाए हैं, उन पर सवाल उठ रहे हैं. एक माह बीत जाने के बाद भी अपराधी अब तक पुलिस के पकड़ से दूर है.

पुलिस ने गांव के किशोरी का जांच कराया DNA
वहीं अब पुलिस ने डीएनए जांच की प्रक्रिया में गांव के ही सात किशोरों को शामिल किया है जिनकी उम्र 7 से 12 साल बताई जा रही है. अब गांव के लोग इस पर आपत्ति जता रहे हैं. स्थानीय लोगों का कहना है किइतनी बड़ी संख्या में किशोरों को इस तरह से जांच में शामिल करना उनकी मानसिक स्थिति पर बुरा असर डाल सकता है.

ग्रामीणों ने पुलिस की कार्यशैली पर उठाया सवाल
ग्रामीणों ने पुलिस को इस कार्यशैली का कड़ा विरोध जताया है. उनका कहना है कि ये बच्चे अभी नासमझ है, और उन्हें इस तरह की गंभीर जांच प्रक्रिया में शामिल करना उनके मानसिक और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा. उन्हें ऐसे अपराधी की तरह देखना ठीक नहीं है. उससे उनका भविष्य भी खराब हो सकता है.

पुलिस ने जांच को तेज़ी से आगे बढ़ाते हुए अब 45 से अधिक ग्रामीणों के सैंपल लिए हैं. ये सैंपल डीएनए जांच के लिए भेजे गए हैं, ताकि जल्द से जल्द अपराधी तक पहुंचा जा सके. पुलिस का कहना है कि यह एक संवेदनशील मामला है और वे हर एंगल से जांच कर रहे हैं. गांव के मासूम बच्चों का डीएनए टेस्ट लेने पर उनके माता पिता विशेष रूप से चिंतित है. वे पुलिस से अपील कर रहे है कि जांच में सावधानी बरती जाए और बच्चों को अनावश्यक रूप से परेशान न किया जाए. उनका तर्क है कि पुलिस को अन्य पहलुओं पर भी गौर करना चाहिए और केवल डीएनए टेस्ट पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए.

बाल अधिकार संगठनों ने दर्ज कराई आपत्ति
इस पूरे मामले पर अब बाल अधिकार संगठनों ने भी अपनी आपत्ति दर्ज कराई है. उनका कहना है कि जांच की प्रक्रिया बच्चों के अनुकूल होनी चाहिए, और किसी भी बच्चे को अनावश्यक रूप से परेशान नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने मांग की है कि जांच में पारदर्शिता बरती जाए और बच्चों के अधिकारों का हनन न हो. उनका मानना है कि पुलिस को बच्चों के अधिकारों और उनकी संवेदनशीलता का पूरा ध्यान रखना चाहिए.

किसी निर्दोष को नहीं सताया जाएगा- एसपी
वहीं, इस मामले पर पुलिस अधीक्षक अभिनंदन का पक्ष भी सामने आया है. पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है और इसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ सच्चाई तक पहुंचना है. उन्होंने आश्वासन दिया है कि किसी भी निर्दोष को सताया नहीं जाएगा और जांच पूरी निष्पक्षता के साथ की जाएगी.

इस बीच, पीड़ित बच्ची के परिवार का दर्द साफ झलकता है. उनके लिए इस वक्त सबसे महत्वपूर्ण न्याय है. बच्ची के परिजनों का साफ कहना है कि उन्हें सिर्फ न्याय चाहिए, और अपराधी को सख्त से सख्त सज़ा मिलनी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई और ऐसी जघन्य वारदात करने की हिम्मत न कर सके.