
इजरायल और ईरान के बीच जारी युद्ध के बहाने भारत के साथ तेहरान के रिश्तों की भी चर्चा हो रही है. एक पक्ष भारत और ईरान के पुराने रिश्तों की दुहाई दे रहा है. इस बहाने वह पीएम नरेंद्र मोदी सरकार की विदेश नीति पर भी सवाल उठा रहा है. लेकिन, यह सिक्के एक पहलू है. कांग्रेस की सबसे सीनियर नेता सोनिया गांधी ने भी सरकार की विदेश खासकर ईरान नीति को लेकर सवाल उठाए हैं. लेकिन, शायद वह उस सच्चाई से मुंह मोड़ रही हैं जिसमें उनकी ही सरकार ने 2005 में ईरान को इतिहास में पहली बार ‘धोखा’ दिया था.
दरअसल, भारत और ईरान के बीच रिश्ते सदियों पुराने हैं. फिर भी पिछले दो दशकों में भारत की ईरान नीति में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 2005 में भारत ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) में ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ वोट दिया था, जो उस समय एक अप्रत्याशित कदम था. उस वक्त मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार अमेरिका के साथ अपने नागरिक परमाणु समझौते को लेकर डील कर रही थी. ऐसे में माना जाता है कि वाशिंगटन के दबाव में भारत ने यह फैसला लिया. यह भारत की ईरान नीति में एक ऐतिहासिक बदलाव था. इसके करीब दो दशक बाद 2024 में भारत ने ईरान के खिलाफ आईएईए में वोटिंग से खुद को अलग रखा. यानी वह 2005 की तुलना में 2024 में ईरान के करीब होते दिखा. कुल मिलाकर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत की यह संतुलन की नीति को दिखता है.
इस बीच, ईरान-इजरायल युद्ध और ईरान पर अमेरिकी हमले के बीच कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक लेख लिखकर भारत की विदेश नीति पर सवाल उठाए और ईरान के साथ रिश्तों को लेकर चिंता जताई. ऐसे में 2005 की घटना को देखते हुए सवाल उठता है कि क्या सोनिया गांधी का यह लेख सच्ची चिंता को दर्शाता है या यह सिर्फ राजनीतिक घड़ियाली आंसू हैं?
2005 में भारत का ईरान के खिलाफ वोट देना एक बड़ा कूटनीतिक कदम था. उस समय भारत ने 21 अन्य देशों के साथ मिलकर आईएईए के प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें ईरान को अपने परमाणु समझौते का उल्लंघन करने वाला पाया गया था. यह फैसला भारत के लिए आसान नहीं था, क्योंकि ईरान उसका दूर का पड़ोसी और महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार था. लेकिन अमेरिका के साथ परमाणु डील के कारण भारत पर दबाव था. वाशिंगटन ने भारत को साफ संदेश दिया था कि ईरान के खिलाफ वोट नहीं देने पर यह डील खतरे में पड़ सकती है. नतीजतन भारत ने अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए ईरान के खिलाफ वोट दिया, जिससे घरेलू राजनीति में हंगामा मच गया. उस वक्त यूपीए सरकार को समर्थन दे रहे वामपंथी दलों ने इसे अमेरिका के सामने झुकना करार दिया.
2024 में भारत की रणनीति बदलती दिखी. जून और सितंबर 2024 में आईएईए में ईरान के खिलाफ अमेरिका द्वारा लाए गए प्रस्तावों पर भारत ने वोटिंग से दूरी बनाई. यह फैसला भारत की उस कूटनीति को दर्शाता है, जिसमें वह न तो अमेरिका और इजरायल के साथ अपने रक्षा और सुरक्षा संबंधों को नुकसान पहुंचाना चाहता है और न ही ईरान के साथ अपने ऐतिहासिक और आर्थिक रिश्तों को. भारत ने चाबहार बंदरगाह जैसी परियोजनाओं के जरिए ईरान के साथ सहयोग बनाए रखा. भले ही अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण तेल आयात कम करना पड़ा. यह संतुलन भारत की परिपक्व होती विदेश नीति का हिस्सा है जो वैश्विक मंच पर जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में उसकी छवि को मजबूत करता है.
सोनिया गांधी का लेख
इसी बीच सोनिया गांधी ने अपने लेख में भारत की विदेश नीति को आत्मघाती बताया और कहा कि भाजपा सरकार ने अमेरिकी दबाव में ईरान के साथ रिश्तों को नुकसान पहुंचाया है. उन्होंने ईरान के साथ भारत के प्राचीन संबंधों का हवाला देते हुए चिंता जताई और कहा कि मौजूदा नीतियों के दूरगामी दुष्परिणाम होंगे. लेकिन यह लेख कई सवाल खड़े करता है. जब 2005 में यूपीए सरकार ने अमेरिकी दबाव में ईरान के खिलाफ वोट दिया, तब सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष थीं. उस समय उनकी चुप्पी और अब की यह चिंता विरोधाभासी लगती है. कुछ आलोचकों का मानना है कि यह लेख सिर्फ राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जिसका मकसद मुस्लिम वोट बैंक को लुभाना और भाजपा को घेरना है.
सोनिया गांधी के लेख की टाइमिंग भी सवालों के घेरे में है. हाल ही में अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों- इस्फहान, नतांज और फोर्डो पर हमले किए, जिससे क्षेत्रीय तनाव चरम पर है. ऐसे में ईरान के पक्ष में बोलना भारत की कूटनीति के लिए जोखिम भरा हो सकता है. भारत ने हमेशा ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम का समर्थन किया है, लेकिन हथियारों के विकास का विरोध भी किया है. सोनिया गांधी का लेख इस संतुलन को नजरअंदाज करता दिखता है. साथ ही, यह भी सच है कि ईरान ने कश्मीर मसले और नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) जैसे मुद्दों पर भारत के खिलाफ बयान दिए हैं, जिसे कुछ लोग भारत के प्रति ईरान की दोहरी नीति मानते हैं.