यह बात 2007 की है, जून का महीना, 15 तारीख. शाम के 5 बज रहे थे. सूरज ढल रहा था, लेकिन गर्मी अभी भी तप रही थी. हरियाणा रोडवेज की एक बस कुरुक्षेत्र से करनाल की ओर तेजी से जा रही थी. बस अभी 20 किलोमीटर ही चली थी कि अचानक एक सफेद स्कॉर्पियो गाड़ी बस के सामने आकर रुक गई. गाड़ी से 8-10 लोग तेजी से उतरे और बस में चढ़ गए. उनके चेहरों पर गुस्सा साफ दिख रहा था. एक ने जोर से चिल्लाया, ‘ये रहा मनोज! इसे नीचे उतारो!’
मनोज करीब 20-22 साल का था. उसके साथ बैठी लड़की, जिसकी उम्र 19 साल के आसपास थी, दुबली-पतली, गोरे रंग की थी. उसके माथे पर लाल सिंदूर और हाथों में लाल चूड़ा था. दोनों एक-दूसरे का हाथ थामे बैठे थे. स्कॉर्पियो से आए लोगों ने मनोज और लड़की को घसीटते हुए बस से नीचे उतार लिया. बस में सवार कुछ लोग डर के मारे चुपचाप देख रहे थे. ड्राइवर ने घबराते हुए बस आगे बढ़ाने की कोशिश की, तभी नीचे एक लंबा-चौड़ा लड़का मनोज के पास पहुंचा. उसने मनोज के हाथ पीछे मोड़कर जकड़ लिए. इसके बाद चार-पांच लोगों ने लाठियों से मनोज को पीटना शुरू कर दिया. हम बात कर रहे हैं करनाल डबल मर्डर केस के बारे में. चलिए आपको बताते हैं आगे की कहानी के बारे में.
रस्सी से बांध दिए हाथ और पैर
एक लड़का लड़की के बाल पकड़े और सड़क पर घसीटना शुरू कर दिया. लड़की चीखी, ‘हमें छोड़ दो! हमने कुछ गलत नहीं किया!’ लेकिन किसी ने उसकी नहीं सुनी. दो लोग उसका हाथ पकड़कर सड़क किनारे पर पटक दिया. तीन-चार लोगों ने मिलकर मनोज और लड़की के हाथ-पैर रस्सी से बांध दिए. किसी ने लड़की का दुपट्टा खींचा और उसे फाड़कर पहले लड़की का मुंह बांधा, फिर बचे हुए कपड़े को मनोज के मुंह में ठूंस दिया. दो लोग मनोज को घसीटते हुए स्कॉर्पियो के पीछे ले गए और रस्सी का एक सिरा मनोज के हाथों से और दूसरा सिरा गाड़ी से बांध दिया. लड़की को स्कॉर्पियो की बीच वाली सीट पर धकेल दिया गया.

स्कॉर्पियो तेज रफ्तार से कैथल की ओर चल पड़ी. पीछे बंधा मनोज सड़क पर घिसटने लगा. जून की गर्मी में डामर की सड़कें आग की तरह तप रही थीं. कुछ ही मिनटों में मनोज के कपड़े फट गए. उसका शरीर खून से लथपथ हो गया. यहां तक की मनोज का मांस उधड़ने लगा, लेकिन स्कॉर्पियो रुकी नहीं. 2-3 किलोमीटर बाद तीन लोगों ने मिलकर अधमरे मनोज को डिग्गी में ठूंस दिया. लड़की भी अब डर और दर्द से बेहोश हो चुकी थी. स्कॉर्पियो फिर तेजी से कैथल की ओर बढ़ चली.
खेत में रुकी गाड़ी
रात हो चुकी थी. चारों तरफ सन्नाटा था. गंगाराज ने ड्राइवर से कहा, ‘गाड़ी रोको.’ स्कॉर्पियो रुकी और सब गाड़ी से उतर गए. मनोज और लड़की को घसीटकर खेतों के बीच ले जाया गया. तभी एक मारुति कार वहां पहुंची. उसमें से दो लोग उतरे, जिनके हाथों में लाठियां थीं. खेतों में कुछ दूर जाने के बाद दो लोगों ने लड़की और मनोज को कार से निकाला और बाहर फेंक दिया.
प्राइवेट पार्ट में डाला डंडा
सबने मिलकर मनोज को पीटना शुरू कर दिया. किसी ने उसका हाथ पकड़ा और हाथ-पैर की उंगली तोड़ दी. तभी एक आदमी ने मनोज की गर्दन पकड़ी और जोर से मरोड़ दी. दूसरे ने लाठी उठाई और मनोज के प्राइवेट पार्ट पर डंडे मारे और फिर दूसरे आदमी ने मनोज के प्राइवेट पार्ट पर डंडा ठूंस दिया. मनोज की तेज चीख निकली और उसकी सांसे थम गईं. लड़की ने यह सब देखा, लेकिन वह कुछ कर नहीं पाई. वह जमीन पर अधमरी पड़ी थी. तभी एक 22-23 साल का लड़का आया, उसके हाथ में सल्फास की डिब्बी थी. उसने लड़की की गर्दन पकड़ी और उसके मुंह में सल्फास की डिब्बी उड़ेल दी. लड़की छटपटाने लगी, धीरे-धीरे उसके मुंह से झाग निकलने लगा और फिर सांसे थम गईं. इसके बाद मनोज और लड़की की बॉडी को नहर में फेंक दिया गया.

पुलिस को मिली लाश
एक हफ्ते बाद, 23 जून 2007, हिसार के नारनौद के पास खेड़ी चोकटा गांव में एक आदमी को नजर बाल समाध नहर के किनारे एक सफेद बोरी पर पड़ी. पास गया तो सड़ी-गली लाश की बदबू आई. उसने देखा कि कीड़े रेंग रहे थे. थोड़ा और पास गया तो दूसरी लाश दिखी. वह डर गया और भागता हुआ नारनौद थाने पहुंचा. उसने SHO विनोद कुमार को बताया, ‘नहर किनारे दो लाशें पड़ी हैं.’ SHO अपनी टीम के साथ 4 बजे नहर पहुंचे. लाशों की तस्वीरें लीं और उन्हें थाने ले आए. पोस्टमार्टम के बाद लाशें मॉर्च्युरी में रखी गईं. कई दिन तक कोई दावेदार नहीं आया, तो पुलिस ने उन्हें लावारिस मानकर दाह-संस्कार कर दिया.
भाई और चाचा ने ही…
3 दिन बाद, 26 जून 2007, सुबह 9 बजे. करनाल के बुटाना थाने के इंस्पेक्टर अमरदास ने स्कॉर्पियो के मालिक राजेश के घर छापा मारा. पुलिस ने लड़की के रिश्तेदारों के फोन नंबर और कॉल डिटेल्स खंगाली.1 जुलाई को पुलिस ने लड़की के भाई सुरेश, चाचा राजेंद्र और ममेरे भाई गुरदेव को गिरफ्तार कर लिया. अगले दिन मामा बारूराम और ममेरे भाई सतीश भी पकड़े गए.
इंस्पेक्टर ने सुरेश से पूछा, ‘मनोज और लड़की को किसने मारा?’
सुरेश ने बिना डरे कहा, ‘मैंने.’
इंस्पेक्टर ने पूछा, ‘क्यों?’
सुरेश बोला, ‘उनका गोत्र एक था. वे भाई-बहन जैसे थे. उनकी शादी हम कैसे बर्दाश्त करते? मनोज को मना किया था, लेकिन वह नहीं माना. उसने हमारे परिवार की इज्जत मिट्टी में मिला दी. इसलिए दोनों को मार दिया.’ इंस्पेक्टर ने पूछा, ‘मनोज को कैसे मारा?. राजेंद्र बोला, ‘रस्सी से बांधकर गर्दन तोड़ दी. दोनों की लाश नहर में फेंक दी.’
खेत में मिला मौत का सामान
पुलिस खेत गई और मारुति कार बरामद की. गाड़ी की सफाई में लड़की की पाजेब के घुंघरू और मनोज-लड़की की फटी फोटो मिली. उसी दिन SHO सुभाष ने IPC की धारा 364 यानी अपहरण करने, 302 यानी कत्ल, 201 यानी सबूत मिटाने, 120-B यानी आपराधिक साजिश रचने की FIR दर्ज कर ली. केस की गुत्थी खुल चुकी थी, लड़की के भाई, मामा और ममेरे भाई ने ही लड़की बबली और मनोज को मौत के घाट उतारा था. हत्या का कारण सिर्फ ये था कि दोनों लड़का-लड़की एक ही गोत्र के थे और रिश्ते में भाई और बहन लगते थे.
सबको मिली फांसी की सजा
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, 25 मार्च 2010 को करनाल सेशन कोर्ट की जज वाणी गोपाल शर्मा ने सुरेश, राजेंद्र, बारूराम, सतीश, गुरदेव, गंगाराज और ड्राइवर मनदीप को दोषी ठहराया. 30 मार्च 2010 को जज ने फैसला सुनाया. जज ने कहा, ‘मनदीप को पता था कि सभी मनोज और लड़की को किडनैप करने जा रहे हैं. उसने उनकी बर्बरता देखी, फिर भी कुछ नहीं किया. उसे 7 साल की सजा.’ गंगाराज को उम्रकैद मिली. सुरेश, राजेंद्र, बारूराम और गुरदेव को फांसी की सजा सुनाई गई.