
‘मैंने कोई गुनाह नहीं किया, फिर भी मुझे दो साल जेल में बिताने पड़े. मेरे माथे पर झूठा कलंक लगा, मेरी इज्जत मिट्टी में मिल गई, और समाज ने मुझे तिरस्कार की नजरों से देखा. सरकार को मुझे 5 करोड़ रुपये का हर्जाना देना चाहिए. उन पुलिस अफसरों पर भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, जिनकी गलती से मेरी जिंदगी तबाह हो गई.’ ये शब्द हैं कुरुबारा सुरेश के, उन्हें अपनी जिंदा पत्नी की हत्या के झूठे इल्जाम में 1 साल 8 महीने तक जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ा. चलिए आपको बताते हैं कि आखिर मामला क्या है. ये कहानी शुरू होती है साल 2020 से, जब कर्नाटक के मैसूर में रहने वाले कुरुबारा सुरेश की पत्नी मल्लिगे अचानक गायब हो गई. सुरेश ने अपनी पत्नी की बहुत तलाश की, लेकिन जब वो नहीं मिली, तो उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. पुलिस मल्लिगे की तलाश में जुट गई. कुछ दिनों बाद, बेट्टदारापुरा इलाके में एक महिला का कंकाल मिला. पुलिस ने बिना पूरी जांच किए उस कंकाल को मल्लिगे का मान लिया और सुरेश पर उसकी हत्या का इल्जाम लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.पुलिस ने कंकाल को डीएनए टेस्ट के लिए भेजा और मल्लिगे की मां का ब्लड सैंपल लिया, लेकिन डीएनए रिपोर्ट आने से पहले ही पुलिस ने जल्दबाजी में कोर्ट में फाइनल चार्जशीट दाखिल कर दी. चार्जशीट में पुलिस ने दावा किया कि मल्लिगे की हत्या उसके पति सुरेश ने की. बाद में डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट आई, जिसमें साफ हो गया कि कंकाल मल्लिगे का नहीं था. फिर भी, पुलिस अपनी बात पर अड़ी रही और सुरेश को जेल में रखा गया.पुलिस को मल्लिगे की मां और गांव वालों की गवाही लेने को कहा. कोर्ट में सभी गवाहों ने एक ही बात कही कि मल्लिगे जिंदा है और वो किसी के साथ भाग गई है. कोर्ट ने पुलिस की चार्जशीट पर सुरेश की तरफ से कोर्ट में डिस्चार्ज एप्लीकेशन दाखिल की गई, जिसमें कहा गया कि मल्लिगे का कंकाल नहीं मिला और डीएनए टेस्ट में भी कोई सबूत नहीं है. लेकिन कोर्ट ने इस एप्लीकेशन को खारिज कर दिया और सवाल उठाए, लेकिन पुलिस वाले अपनी जिद पर अड़े रहे कि कंकाल मल्लिगे का है और हत्या सुरेश ने ही की. इस तरह, सुरेश को बिना किसी ठोस सबूत के 20 महीने तक जेल में रहना पड़ा.मामले में बड़ा मोड़ तब आया, जब मल्लिगे मडिकेरी के एक होटल में अपने दोस्त के साथ खाना खाते हुए देखा. सुरेश के एक दोस्त ने उसे देखा और तुरंत पुलिस को सूचना दी. पुलिस मौके पर पहुंची और मल्लिगे को थाने ले गई. इसके बाद कोर्ट में एक एडवांसमेंट एप्लीकेशन दाखिल की गई, जिसमें साफ हुआ कि मल्लिगे जिंदा है. कोर्ट ने पुलिस की लापरवाही को देखते हुए सुरेश को बाइज्जत बरी कर दिया. साथ ही, गृह विभाग को सुरेश को 1 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया गया. कोर्ट ने ये भी कहा कि इस गलत जांच के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए.सुरेश का कहना है कि, जेल में बिताए 20 महीनों ने उनकी इज्जत, सम्मान और सामाजिक रुतबे को पूरी तरह बर्बाद कर दिया. सुरेश 1 लाख रुपये का मुआवजा उनकी तकलीफों के सामने कुछ भी नहीं है. वो 5 करोड़ रुपये के हर्जाने की मांग कर रहे हैं, ताकि उनकी जिंदगी को फिर से पटरी पर लाया जा सके. साथ ही, वो चाहते हैं कि उन पुलिस अधिकारियों को सजा मिले, जिनकी गलती से उनकी जिंदगी तबाह हुई.