आपातकाल के बहाने गृहमंत्री अमित शाह ने गांधी पर‍िवार पर जमकर हमला बोला. उन्‍होंने कहा, आज आपातकाल की पूर्व संध्या की 50वीं बरसी है. यह द‍िन हमें कभी भूलने नहीं देना है. क्‍योंक‍ि यह वही वक्‍त था जब राजमाता सिंधिया को 4 पागलों के बीच जेल में डाल द‍िया गया. जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, अटल जी, आडवाणी जी, नानाजी देशमुख, फर्नांडिस जी, आचार्य कृपलानी जैसे वरिष्ठ नेता… ये सब जेल की काल कोठरियों में डाल दिए गए. किसी को कोई मौका नहीं दिया गया और आने वाले समय में गुजरात और तमिलनाडु की गैर कांग्रेसी सरकारों को भी गिराने का काम किया गया.
अमित शाह ने कहा, आज आपातकाल की पूर्व संध्या की 50वीं बरसी है. आज का दिन इस संगोष्ठी के लिए उचित दिन है. क्योंकि अच्छे या बुरे किसी भी प्रकार की राष्ट्रीय घटना के जब 50 साल पूरे होते हैं तो समाज जीवन के अंदर इसकी याददाश्त धुंधली हो जाती है और आपातकाल जैसी लोकतंत्र की नींव हिलाने वाली घटना, इसके बारे में याददाश्त यदि समाज जीवन में धुंधली होती है तो किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए बहुत बड़ा खतरा होता है. इसल‍िए ये बात देश की जनता को कभी नहीं भूलनी चाहिए. विशेषकर इस देश के किशोर और युवाओं को ये बात नहीं भूलनी चाहिए.
जब इंद‍िरा गांधी की एक आवाज आई
गृहमंत्री ने कहा, आज बहुत सारे लोग संविधान की दुहाई देते हैं, मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि किस पार्टी से आते हो, किस अधिकार से संविधान की बात करते हो. सुबह सुबह ऑल इंडिया रेडियो से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज आई कि राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की. जो लोग संविधान की दुहाई देते हैं, मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या इसके लिए संसद की सहमति ली गई थी?, क्या मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई गई थी? क्या देशवासियों को, विपक्ष को भरोसे में लिया गया था?
जब तानाशाह के गुलाम बन गए
शाह ने कहा, आप कल्पना कीजिए उस क्षण की (आपातकाल के दौरान), जिस क्षण में कल तक तो आप भारत के नागरिक थे, दूसरे दिन सुबह ही आप एक तानाशाह के गुलाम बनकर रह जाते हैं. कल तक आप एक पत्रकार थे, सच का आईना दिखाने वाले चौथे स्तंभ थे, दूसरे दिन आप असामाजिक तत्व बन जाते हो और देश विरोधी घोषित कर दिए जाते हो. आपने कोई नारा नहीं दिया, कोई जुलूस नहीं निकाला… फिर भी गलती सिर्फ इतनी है कि आपकी सोच आजाद थी. एक क्षण, वो सुबह कितनी क्रूरता के साथ भारत की जनता के ऊपर बीती होगी, इसकी कल्पना हम नहीं कर सकते.
आपातकाल सिर्फ तानाशाह को पसंद
गांधी पर‍िवार को न‍िशाने पर लेते हुए शाह ने कहा, मुझे निश्चित रूप से मालूम है कि उस समय जितने भी नागरिक थे, किसी को ये आपातकाल पसंद नहीं आया होगा, सिवाय तानाशाह और उनसे फायदा उठाने वाली एक छोटी सी टोली के. इसके बाद जब चुनाव हुआ तो आजादी के बाद पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी और मोरारजी देसाई जी प्रधानमंत्री बने. हम सबको ये याद रखना चाहिए कि कितनी बड़ी लड़ाई उस वक्त लोगों ने लड़ी. जेल में रहकर, अपने परिवार का सबकुछ नष्ट करके देश के ल‍िए खड़े रहे. कई लोगों का कर‍ियर खत्‍म हो गया, लेकिन इस लड़ाई ने भारत के लोकतंत्र को जीवित रखा. आज हम दुनिया के सबसे बड़ा लोकतंत्र बनकर सम्मान के साथ खड़े हैं. इस लड़ाई को जीतने का मूल कारण है कि हमारे देश की जनता तानाशाही को कभी स्वीकार नहीं कर सकती. भारत लोकतंत्र की जननी माना जाता है.